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नीली बयाज़ (कविता) / अदनान कफ़ील दरवेश

अगर लफ़्ज़ों की सेहत कम कर दी जाए
तो बहुत बड़ी-बड़ी सतरें भी
उस छोटी-सी जादुई नीली बयाज़ में समा जाती थीं
जो ताक़ पर हिफ़ाज़त से रखी जाती थी
जिसके पिछले पन्नों पर मैं चित्र बनाता
जिसकी ज़रूरत गाहे-बगाहे पड़ ही जाती थी

उसमें हस्बे-हाल शेर
फ़ोन नम्बर
पुराने पते
बच्चों के जन्मदिन
हिसाब-किताब
बचत-क़र्ज़
महीने का पतला बजट
एक दीवाल खड़ी करने की लागत
कितना कुछ होता था उस छोटी-सी नीली बयाज़ में

पहले वो बयाज़ गुम हुई
फिर वो लिपि
फिर वो लोग
फिर वो घर
और फिर हमारा ये जीवन ।

शब्दार्थ
बयाज़ — शायरी वगैरह दर्ज़ करने के लिए डायरी या कॉपी।