♦ रचनाकार: अज्ञात
भारत के लोकगीत
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नीळो तरबूजो केतरो सुहावणो लगऽ
तागली जो घड़जे सोनी भाई, चांद का उजाळऽ
परण्यो निरखऽ दिवला री जोत।
नीळो तरबूजो केतरो सुहावणो लगऽ
हार जो घड़जो सोनी भाई चांद का उजाळ
परण्यो निरखऽ दिवला री जोत।
नीळो तरबूजो केतरो सुहावणो लगऽ