सुनो दोस्त !
यह प्रतिशोध भी
उतना ही खोखला है
उतना ही अधूरा है
उतना ही अँधा है
जितनी की वह हत्या
जिसने तुम्हारा ज़हन
नुकीली सुईयों के अंधड़ से
भर दिया है
और जिसने :
तुम्हें,
मुझे,
उसे,( हाँ,उसे भी !)
अकेला कर दिया है।
सुनो दोस्त !
यह प्रतिशोध भी
उतना ही खोखला है
उतना ही अधूरा है
उतना ही अँधा है
जितनी की वह हत्या
जिसने तुम्हारा ज़हन
नुकीली सुईयों के अंधड़ से
भर दिया है
और जिसने :
तुम्हें,
मुझे,
उसे,( हाँ,उसे भी !)
अकेला कर दिया है।