वह कोई फूल नहीं
जो आकृष्ट कर सके
किसी को अपने मोहक रंग
और नशीली महक से
वह कोई काँटा भी नहीं
जिसकी चुभन से एकबारगी
झनझना जाय मन मस्तिष्क
फिर भी
वह है तो है
वह कोई तस्वीर नहीं
जो सहज ही लुभा ले किसी को
अपनी छटा से
न ही कोई निशान
जिससे जान लिया जाय
कि जोड़ना है अथवा घटाना है
फिर भी वह है तो है
वह है अपना आकार खुद सिरजता
भीमकाय आकारों के जमाने में
सिर उठा कर जीता हुआ
एक नुख्ता भर
जिसके न होने पर
खुदा भी तब्दील हो जाता है
जुदा में