Last modified on 8 जून 2025, at 20:42

नृत्य / भव्य भसीन

वह नृत्य नहीं करती,
उसका रोम रोम खींचता चला जाता है
उसकी वेदना नाचती है।
उन्हें सामने देख बाहें खोल गले लगाना चाहती है।
वह दौड़ती है या विरह चिता के मंच पर उसके प्राण दौड़ते हैं।
पीयू मिलन की आकाँक्षा उसे गिराती फ़िर उठाती है।
उसकी सुंदर भंगिमाएँ प्राणप्यारे से हज़ारों प्रार्थनाएँ हैं।
जिसे तुम नृत्य कहते हो, वह उसका क्रंदन है,
जन्मों जन्मों का, अनवरत ।