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नृत्य / शुभा

याद नहीं है
जाने कहाँ से मिल गए थे हमें घुँघरू
खूब बड़े नाड़े में पिरोए हुए

उन्हें बाँधकर हमारे पैर लगते थे
बिल्कुल नर्त्तकियों के पैरों जैसे

हम चक्रवात की तरह घूमे
और पक्षियों जैसी उड़ाने लीं हमने
हम अपरिचित थे
नृत्य के तमाम शास्त्र से

लेकिन हम जो कर रहे थे
वह नृत्य ही था।