नृशंसता के जंगल में
करुणा की नदी
सूख जाती है
सड़कों पर सड़ती रहती है
मानव देह
लावारिस लाशों को
जमीन में गाड़ दिया जाता है
बिहू नर्तकी की चीख़
वीरानी में गुम हो जाती है
वापस लौटती हैं
घोषणाएँ
निरंकुश घोषणाएँ
सुनते-सुनते आबादी
पत्थर की तरह जड़ हो गई है
राजपथ से गुज़रती रहती हैं
अर्थियाँ
सेना की गाड़ियाँ
राजनेताओं का काफिला
नृशंसता के जंगल में
यंत्रणा के साथ जीवन
पशुओं की तरह गुर्राते हुए
नोचते हुए खसोटते हुए
बिना सोचे-विचारे
गुज़रता रहता है