नेहभरे नयनन्हि सों निरखत लै कर कनक-कटोरी।
दूध पिवावति मातु जसोदा हिय महँ हरख हिलोरी॥
सखा ग्वाल-बालक खेलन को मुदित स्याम ढिंग आये।
पय पीयत निहारि नँद-नंदन सब इत-उत छिप छाये॥
पाइ सुभग संकेत सखनि कौ धावन चहत कन्हैया।
’खेलन जाहु लाल ! पय पीकर’-जननी जात बलैया॥