नेह-लिखा
यह गीत तुम्हारे लिए, सखी
तुमने देखा था कनखी से
उस दिन यह उपजा
उस मधुवेला में साँसों में
ज्यों सन्तूर बजा
हम केसर-घाटी में
उस दिन जिए, सखी
पान-फूल सी छुवन तुम्हारी
सजनी, देह बसी
गिरा-अर्थ का भेद मिटा
हम हैं हंसा-हंसी
घूँट-घूँट अमृत के
हमने पिए, सखी
जिये गीत ने हैं
सिंदूरी साँसों के सुर
मीठे संवादों से गूँजा
मन का, सजनी, अंतःपुर
वहाँ जल रहे होंगे
सजनी
अब भी शायद नेह-दिये