Last modified on 20 अप्रैल 2014, at 14:45

नैया पड़ी मंझधार / कबीर

नैया पड़ी मंझधार गुरु बिन कैसे लागे पार॥

साहिब तुम मत भूलियो लाख लो भूलग जाये।
हम से तुमरे और हैं तुम सा हमरा नाहिं।
अंतरयामी एक तुम आतम के आधार।
जो तुम छोड़ो हाथ प्रभुजी कौन उतारे पार॥
गुरु बिन कैसे लागे पार॥

मैं अपराधी जन्म को मन में भरा विकार।
तुम दाता दुख भंजन मेरी करो सम्हार।
अवगुन दास कबीर के बहुत गरीब निवाज़।
जो मैं पूत कपूत हूं कहौं पिता की लाज॥
गुरु बिन कैसे लागे पार॥