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नोक-झाेंक / हरिऔध

जा रही हैं सूखती सुख क्यारियाँ।
जो रहीं न्यारे रसों से सिंच गईं।
खिंच गये तुम भी इसी का रंज है।
खिंच गईं भौंहें बला से खिंच गईं।

साँच को आँच है नहीं लगती।
हम करेंगे कभी नहीं सौंहें।
चिढ़ गये तो चिढ़े रहें डर क्या।
चढ़ गईं तो चढ़ी रहें भौंहें।

जाय जिससे कुचल कभी कोई।
चाल ऐसी भले न चलते हैं।
आप तो बात ही बदलते थे।
आँख अब किसलिए बदलते हैं।

जब जगह रह गई नहीं जी में।
तब भला क्यों न जी फिरा पाते।
जब बचा रह गया न अपनापन।
आँख कैसे न तब बचा जाते।

जो बहुत से भेद जी के थे छिपे।
आँख से ही लग गये उन के पते।
क्या हुआ जी की अगर चोरी खुली।
जब रहे आँखें चुरा कर देखते।

क्या अजब जो ललक पड़ें; उमगें।
खिल उठें, स्वांग सैकड़ों रच लें।
मुँह खिला देख प्यार-पुतलों का।
आँख की पुतलियाँ अगर मचलें।

पक गया जी, नाक में दम हो गया।
तुम न सुधरे, सिर पड़ी हम ने सही।
हँस रहे हो या नहीं हो हँस रहे।
पर तुम्हारी आँख तो है हँस रही।

छोड़िये ऐंठ मानिये बातें।
किसलिए आप इतने ऐंठे हैं।
आइये आँख पर बिठायेंगे।
आज आँखें बिछाये बैठे हैं।

हम तुम्हें देख देख जीयेंगे।
और के मुँह को देख तुम जी लो।
हम न बदलेंगे रंग अपना, तुम।
आँख अपनी बदल भले ही लो।

हम सदा जी दिया किये तुम को।
तुम हमें जी कभी नहीं देते।
आँख हम तो नहीं बदलते हैं।
आप हैं आँख क्यों बदल लेते।

कुछ पसीजी और जी के मैल को।
एक दो बूँदें गिरा, कुछ धो गईं।
देख लो लाचार तुम भी हो गये।
आज तो दो चार आँखें हो गईं।

लूट लो, पीस दो, मसल डालो।
पर सितम मौत का बसेरा है।
देख अँधेरा, यह कहेंगे हम।
आँख पर छा गया अँधेरा है।

जब कि धन भर गया बहुत उस में।
तब मुरौअत कहाँ ठहर पाती।
जब उलट कर न आप देख सके।
आँख कैसे न तब उलट जाती।

छूट कैसे हाथ से उसके सकें।
जो किसी को हाथ में नट कर करे।
किस तरह उस से बचावें आँख हम।
जो हमारी आँख ही में घर करे।

देखना ही कमाल रखता है।
प्यार का रंग कब जमा वैसे।
आँख जिस पर ठहर नहीं पाती।
आँख में वह ठहर सके कैसे।

आज भी है याद वैसी ही बनी।
है वही रंगत औ चाहत है वही।
तुम तरस खा कर कभी मिलते नहीं।
आँख अब तक तो तरसती ही रही।

देखने ही के लिए सूरत बनी।
देखने ही में न वह पीछे पड़े।
आँख में चुभ कर न आँखों में चुभे।
आँख में गड़ कर न आँखों में गड़े।

जो किसी को लगा बुरा धब्बा।
तो ढिठाई उसे नहीं धोती।
सामने आँख तब करें कैसे।
सामने आँख जब नहीं होती।

हो सराबोर तुम रसों में, तो।
मैं रसों का अजीब सोता हूँ।
किस लिए आँख यों बचाते हो।
मैं नहीं आँखफोड़ तोता हूँ।

देखिये क्या कर दिखाता भाग है।
वे भरे हैं और हम भी हैं खरे।
आज वे बेदरदियों पर हैं अड़े।
हम खड़े हैं आँख में आँसू भरे।

तब भला बात का असर क्या हो।
जब असर के न रह गये नाते।
है कसर बैठ जब गई जी में।
किस तरह आँख तब उठा पाते।

तब भला सीध में कसर क्यों हो।
जब रहे ठीक आँख का तारा।
तब सके चूक किस तरह से वह।
जब गया तीर ताक कर मारा।

आज तक कुछ भी सँभल पाये नहीं।
बात से तो नित सँभलते ही रहे।
ढंग बदलें जो बदलते बन सके।
आप तेवर तो बदलते ही रहे।

काम टेढे से बने टेढे चला।
मान सीधो हो सके सीधो कहे।
क्यों न हम भी आज तेवर लें चढ़ा।
हैं बुरे तेवर दिखाई दे रहे।

हम बड़ी बातें करें तो क्यों करें।
आप ही तो कर बड़ी बातें बढ़े।
हम चढ़ायेंगे कभी तेवर नहीं।
क्यों न होवें आप के तेवर चढे।

बेतरह अरमान मेरे मिस उठे।
साँसतें सारी उमंगों ने सहीं।
हम रहें तो किस तरह अच्छे रहें।
आज तेवर आप के अच्छे नहीं।

किस लिए उन पर कड़े पड़ते रहे।
हाथ बाँधो जो रहे सब दिन खड़े।
डर हमें तिरछी निगाहों का नहीं।
देखिये अब बल न तेवर पर पड़े।

चाहिए था न चोट यों करना।
पत्थरों के बने न सीने थे।
क्यों भला आप भर गये साहब।
कान ही तो भरे किसी ने थे।

क्यों कहेंगे न, सुन सके; सुन लें।
हम मनायेंगे, आप ऐंठे हैं।
हम सकें मूँद मुँह भला कैसे।
आप तो कान मूँद बैठे हैं।

आप तूमार बाँध देते हैं।
और हम ने न खोल मुँह पाया।
हो न जावें तमाम हम कैसे।
आपका गाल तमतमा आया।

आप ही जब कि तन गये मुझ से।
तब भला किस तरह भवें न तनें।
जब हुईं लाल लाल आँखें तब।
गाल कैसे न लाल लाल बनें।

भेद कितने बिन खुले ही रह गये।
आज तक भी आप ने खोले नहीं।
आप का मुँह ताकते ही रह गये।
आप तो मुँह भर कभी बोले नहीं।

किस तरह से दूसरे मीठे बने।
और हम कैसे बने तीते रहे।
आप मुँह से बोल तक सकते नहीं।
आप का मुँह देख हम जीते रहे।

हैं हमीं ऐसे कि जिस को हर घड़ी।
निज सगों का ही बना खटका रहा।
लख लटूरे बाल को जी लट गया।
लट लटकती देख मुँह लटका रहा।

आँख से क्या निकल पड़े आँसू।
मैल जी का सहल नहीं धुलना।
आप मुँह देख जीभ ले ही लें।
है बहुत ही मुहाल मुँह खुलना।

बढ़ गये पर बुरे बखेड़ों के।
बैर का पाँव गाड़ना देखा।
हो गये पर बिगाड़ बिगड़े का।
मुँह बिगड़ना बिगाड़ना देखा।

वह उतर कर चढ़ा रहा चित पर।
रंग लाया पसीज पड़ कर भी।
बन गई बात बिन बनाये ही।
रंग मुँह का बना बिगड़ कर भी।

कारनामा वह बहुत आला रहा।
आप की करतूत है भोंड़ी बड़ी।
मुँह दिया था दैव ने ही तो बना।
आप को क्या मुँह बनाने की पड़ी।

क्यों न सब दिन मुँह चुराते वे रहें।
चोर को देती चिन्हा हैं चोरियाँ।
हैं बड़ी कमजोरियाँ उन में भरी।
देख लीं मुँहजोर की मुँहजोरियाँ।

बात वह भी लगी बहुत खलने।
आप को जो न थी कभी खलती।
अब लगे आप मुँह चलाने क्यों।
जीभ तो कम नहीं रही चलती।

इस तरह का बना कलेजा है।
जो कि सारी मुसीबतें सह ले।
बेधड़क आग मुँह उगल लेवे।
जीभ बातें गरम गरम कह ले।

आप साहस बँधाइये मुझ को।
क्या करेंगी भली बुरी घातें।
देखिये दब न जाय जी मेरा।
सुन दबी जीभ की दबी बातें।

जब कि नीरस बात मुँह पर आ गई।
किस तरह रस-धार तब जी में बहे।
छरछराहट जब कलेजे में हुई।
मुसकुराहट होठ पर कैसे रहे।

प्यार का कुम्हला गया मुखड़ा खिला।
पड़ गये अरमान पर रस के घड़े।
मैल कितना ही निकल पल में गया।
खोल कर दिल खिलखिलाकर हँस पड़े।

आँख कैसे न तब बहा करती।
आँख ही आँख जब गड़ाती है।
किस तरह तब हँसी न छिन जाती।
जब हँसी ही हँसी उड़ाती है।

दिल छिलेंगे कभी न क्या उन के।
क्या पड़ेंगे न जीभ पर छाले।
बेतरह छिल गये कलेजे को।
छील लें बात छीलने वाले।

सामना जब बदसलूकी का हुआ।
तब बिचारी बूझ जाती दब न क्यों।
बान ही जब है उलझने की पड़ी।
बात कह उलझी उलझते तब न क्यों।

दिल भला किस तरह न जाता हिल।
जब कपट से न ठीक ठीक पटी।
जीभ कैसे न लटपटा जाती।
बात कहते हुए लगी लिपटी।

बान जिन की पड़ी बहकने की।
मानते वे नहीं बिना बहके।
बेतुकापन नहीं दिखाते कब।
बेतुके बात बेतुकी कह के।

जब सुलझना उन्हें नहीं आता।
तब गिरह खोल किस तरह सुलझें।
चाल का जाल जब बिछाते हैं।
तब न क्यों बात बात में उलझें।

लूटते हैं फँसा लपेटों में।
बेतरह हैं कभी कभी ठगते।
कब नहीं बूझ से गये तोले।
हैं बतोले बहुत बुरे लगते।

जो किसी चित से नहीं पाती उतर।
दे बना बेचैन वह मूरत नहीं।
अनबनों में पड़ न आँखों में गड़े।
देखिये बिगड़े बनी सूरत नहीं।

सब तरह के लाभ की बातें सुना।
रुचि बहुत ही आज बहलाई गई।
किस तरह देखे बिना सूरत जियें।
वह हमें सूरत न बतलाई गई।

भौंह सीधी, हँसी बहुत सादी।
औ सरलपन भरी हुई बोली।
हम भला भूल किस तरह देवें।
भूलती हैं न सूरतें भोली।

लालसा है रस बरसती ही रहे।
पर तुमारी आँख रिस से लाल है।
यह चमेली है खिलाना आग में।
यह हथेली पर जमाना बाल है।

प्यारे का प्याला नहीं हम भर सके।
भर सको तो अब उसे भर लो तुम्हीं।
हम तुम्हें तो ले न मूठी में सके।
मूठियों में अब हमें कर लो तुम्हीं।

गुदगुदायें औ रिझायें रीझ कर।
बात मीठी बोल कर मन मोल लें।
दूसरा तो खोल सकता ही नहीं।
खोलना हो आप मूठी खोल लें।

काम कब तक भला बनावट दे।
रीझ कब तक भला रहे रूठी।
बोलते बोलते गये खुल हम।
खोलते खोलते खुली मूठी।

हम बलायें आप की हैं ले रहे।
और हम पर आप लाते हैं बला।
चाल चलने से कभी चूके नहीं।
चाह है तो लो तमाचे भी चला।

यह सताने में सहमता ही नहीं।
सब सुखों के हैं हमें लाले पड़े।
सुन गँसीली बात हाथों के मले।
छिल गया दिल, हाथ में छाले पड़े।

मत बचन-बान मार बीर बनें।
क्या नहीं प्यार प्यार-थाती में।
छेद लें छेदने चले हैं तो।
देखिये हो न छेद छाती में।

आप के जैसा जिसे हीरा मिले।
क्यों मरे वह चाट हीरे की कनी।
आप तन करके हमें तन बिन न दें।
जो तनी है तो रहे छाती तनी।

जब कभी बात तर कही न गई।
हो सके किस तरह कलेजा तर।
देखना हो अगर दहल दिल की।
देखिये हाथ रखकर कलेजे पर।

किस तरह प्यार कर सकें उन को।
जो चुभे बार बार नेजे से।
दुख कलेजा गया जिन्हें देखे।
क्यों लगायें उन्हें कलेजे से।

बेतरह रोब गाँठते ही थे।
अब गया मौत को सहेजा क्यों।
आँख तो आप काढ़ते ही थे।
अब लगे काढ़ने कलेजा क्यों।

किस तरह रीझता रिझाये वह।
जब किये प्यार खीज खीजा ही।
किस तरह तब पसीजता कोई।
जब कलेजा नहीं पसीजा ही।

है बड़े बेपीर से पाला पड़ा।
भाग में सुख है न दुखियों के लिखा।
जो कलेजा देख दुख पिघला नहीं।
तो कलेजा काढ़ कैसे दें दिखा।

प्यार ही से भरा हुआ वह है।
देख लें देख वे सकें जैसे।
जब निकलती नहीं कसर जी की।
हम कलेजा निकाल दें कैसे।

ताड़ने वाले नहीं कब ताड़ते।
तोड़ना है दिल अगर तो तोड़ लो।
मुँह चिढ़ा लो मोड़ लो मुँह बक बहँक।
फोड़ लो दिल के फफोले फोड़ लो।

वे चुहल के चाव के पुतले बने।
चोचलों का रंग है पहचानते।
चाल चखना, चौंकना, जाना मचल।
दिल चलाना दिलजले हैं जानते।

वह भला है, है भलाई से भरा।
या घिनौने भाव हैं उस में घुसे।
खोल कर हम दिल दिखायें किस तरह।
देख लें दिल देखने वाले उसे।

देखने दें मूँद आँखों को न दें।
हिल गये क्यों, जो गई है जीभ हिल।
आप छन भर सोचने देवें हमें।
सब गया छिन, अब न लेवें छीन दिल।

कुछ नहीं रंग ढंग मिल पाता।
हिल गया वह, कभी गया वह खिल।
क्या भला खीज कर किया दिल ने।
क्या करेगा पसीज करके दिल।

क्यों हँसी मेरी उड़ाती है हँसी।
बात रंगत में चुहल की क्यों ढली।
किस लिए दिल काटने चुटकी लगा।
आप ने चुटकी अगर दिल में न ली।

प्यार तो हम किया करेंगे ही।
बारहा क्यों न जाय दिल फेरा।
दिलजले हम बने रहेंगे ही।
क्यों न हो दिल दलेल में मेरा।

प्यार जब चाहते नहीं करना।
क्यों न सुन नाम प्यार का काँखें।
रंग बदला, बदल गये तेवर।
दिल बदलते बदल गईं आँखें।

कर सके तो कर दिखाये प्यार ही।
वह सितम के खोज ले हीले नहीं।
ले भले ही ले दुखाये दिल नहीं।
छीन ले दिलदार दिल छीले नहीं।

है कलह तोर मोर का पुतला।
है कपट का उसे मिला ठीका।
है भरी पोर पोर कोर कसर।
वह बड़ा ही कठोर है जी का।

हम नहीं आँखें लड़ाना चाहते।
हैं लड़ाकी आप की आँखें लड़ें।
आप जी में जल रहे हैं तो जलें।
क्यों फफोले और के जी में पड़ें।

अब न आँसू आँख में मेरी रहा।
आप ने आँखें उठा ताका नहीं।
क्यों पके जी का मरम वह, पा सके।
हो गया जिसका कि जी पाका नहीं।

थीं पसंद बनाव की बातें हमें।
अलबनों का तुम गला रेते रहे।
कब रहे लेते हमारा जी न तुम।
हम तुम्हें कब जी नहीं देते रहे।

बात पर आन बान वालों की।
आप क्यों कान दे नहीं सकते।
तो गँवा मान और क्या माँगें।
जी अगर दान दे नहीं सकते।

बे ठने उस से रहेगी किस तरह।
जो कि उठते बैठते है ऐंठता।
बात क्यों उस से बिठाये बैठती।
फेर करके पीठ जो है बैठता।

आप के हाथ ही बिके हम हैं।
रुचि रही कब न आप की चेरी।
है अगर चाह भाँप लेने की।
आप तो पीठ नाप लें मेरी।

अड़ गये अपनी जगह पर गड़ गये।
देख लो तुम टाल टलते ही नहीं।
हम न मचले हैं चलें तो क्यों चलें।
ऐ हमारे पाँव चलते ही नहीं।