रचनाकार: गुलज़ार , गायक: |
कश लगा, कश लगा, कश लगा, कश लगा....
ज़िन्दगी ऐ कश लगा - 2,हसरतों की राख़ उड़ा
ये जहान फ़ानी है, बुलबुला है, पानी है
बुलबुलों पे रुकना क्या, पानियों पे बहता जा बहता जा
कश लगा, कश लगा, कश लगा....
जलती है तनहाईयाँ कटी है रात रात जाग जाग के
उड़ती हैं चिंगारियाँ, गुच्छे हैं लाल लाल गीली आग के
खिलती है जैसे जलते जुगनू हों बेरियों में
आँखें लगी हो जैसे उपलों की ढेरियों में
दो दिन का आग है ये, सारे जहाँ का धुंआँ
दो दिन की ज़िन्दगी में, दोनो जहाँ का धुआँ
ये जहान फ़ानी है, बुलबुला है, पानी है
बुलबुलों पे रुकना क्या, पानियों पे बहता जा, बहता जा
कश लगा, कश लगा, कश लगा....
छोड़ी हुई बस्तियाँ, जाता हूँ बार बार घूम घूमके
मिलते नहीं वो निशान, छोड़े थे दहलीज़ चूम चूमके
जो आए चढ़ जायेंगे, जंगल की क्यारियाँ हैं
पगडंडियों पे मिलना, दो दिन की यारियाँ हैं
क्या जाने कौन जाये, बारी से बारी आए
हम भी कतार में हैं, जब भी सवारी आए
ये जहान फ़ानी है, बुलबुला है, पानी है
बुलबुलों पे रुकना क्या, पानियों पे बहता जा बहता जा
कश लगा, कश लगा, कश लगा....