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नौ / आह्वान / परमेश्वरी सिंह 'अनपढ़'

वीर से भारत भू खाली
कायरों की है यहाँ भरमार
रोज सहते है शिर पर मार
उठो! सुकुमारी बन काली
प्राण रहते पशु बनकर हाय
झुके अरी के आगे निरुपाय
विश्व भर चाहे दे गाली
तजो अब मदों से जय आश
उठा लो नारी तुम इतिहास
तुम्हीं थी दुर्गा रणकाली
छोड़ दो तुम अपना नि: श्वास
विश्व भर का हो जाय नाश
फन काढ़ उठो तुम हो नागन काली
फूल मर्दों ने तुम मान
किया युग-युग तेरा अपमान
तुझमें वीरत्व महान वीर बाली