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न्याय/ अशोक कुमार पाण्डेय

तुम जिनके दरवाजों पर खड़े हो न्याय की प्रतीक्षा में
उनकी दराजों में पियरा रहे हैं फ़ैसलों के पन्ने तुम्हारी प्रतीक्षा में

(एक)

इंसाफ़ की एक रेखा खींची गयी थी जिसके बीचोबीच एक बूढ़ा भूखे रहने की ज़िद के साथ पड़ा हुआ था . वह चाहता था उसकी गर्दन से गुज़रे वह रेखा लेकिन इंसाफ़ का तकाजा था कि ठीक उसके दिल से गुज़री वह आरपार और लहू की एक बूँद नहीं बही.

लहू की एक बूँद नहीं बही !
और चिनाब से गँगा तक लाल हो गया पानी
इंसाफ़ बचा रहा और इंसान मरते रहे

हम एक फ़ैसले की पैदाइश हैं
और हमें उस पर सवाल उठाने की कोई इजाज़त भी नहीं.

(दो)

जो कुछ कहना है कटघरे में खड़े होकर कहना है
जो कटघरे के बाहर हैं सिर्फ सुनने का हक है उन्हें

यहाँ से बोलना गुनाह और कान पर हाथ रख लेना बेअदबी है.

(तीन)

जिसके हाथों में न्याय का क़लम है
उसे भी कहीं से लेनी होती है पगार
वह सबसे अधिक आज़ाद लगता हुआ
सबसे अधिक ग़ुलाम हो सकता है साथी

उस किताब से एक कदम आगे बढ़ने की इजाज़त नहीं उसे
जिसे गुस्से में जला आये हो तुम अपने घर के पिछवाड़े

उस पर सिर्फ नाराज़ न हो तरस खाओ...

(चार)

पुरखों ने कहा

तुम लोग साठ साल पहले जन्मी किताब पर इतना इतरा रहे हो?
मेरे पास छ हज़ार साल पुरानी किताब है जो छ करोड़ साल पुरानी भी हो सकती है.

फिर कोई पन्ना नहीं उलटा
और उस तलवारनुमा किताब ने उस जोड़े की गर्दन उड़ा दी.

उस किताब में इज्जत का पर्यायवाची ह्त्या था
और न्याय का भी!

(पाँच)

पुरखों के हाथ तक महदूद नहीं थी वह किताब

न्यायधीश ने कहा
ऊंची जाति के लोग बलात्कार नहीं करते
वंश सुधार के लिए तो न्याय सम्मत है नियोग
यह जो अफसर बन के घूम रहे हैं लौंडे तुम्हारे
बडजतियों की ही तो देन हैं

होठों की कोरों से मुस्कराया वह
और न्याय की देवी की देह से उतरकर वस्त्र
भंवरी देवी के पैरों की बेडी बन गए.

(छः)

क़ानून सिर्फ इंसानों के लिए है
इंसानों की हैवानी भीड़ का केस लिए यह क्यों आ गए तुम न्यायालय में?

एक आदमी की हत्या का फ़ैसला अभी अभी छः सौ पन्नों में टाइप हुआ है
एक हज़ार लोगों की हत्या का मामला पांच साल बाद तय कर लेना चुनाव में.


(सात)

यह न्याय है कि यहाँ के फ़ैसले अहले हवस करेंगे
मुद्दई लाख सर पटके तो क्या होता है?

अपराध का नाम इरोम शर्मिला है यहाँ
न्याय का नाम आफ्सपा!

(आठ)

उनका होना न होना क्या मानी रखता था ?

वैसे इनमें से किसी ने नहीं की उनकी हत्या
शक़ तो यह कि वे थे भी कभी या नहीं
थे तो अपराधी थे और सिर्फ पुलिस के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता अपराधियों को

लक्ष्मणपुर बाथे न पहला है न आख़िरी
न्याय के तराजू की कील
न जाने कितनी सलीबों पर ठुकी है.

(नौ)

इस दरवाज़े से कोई नहीं लौटा ख़ाली हाथ
वे भी नहीं जिनके कन्धों पर फिर सर नहीं रहा


(दस)

इतिहास ने तुम पर अत्याचार किया
भविष्य न्याय करेगा एक दिन

दिक्कत सिर्फ इतनी है कि रास्ते में एक वर्तमान पड़ता है कमबख्त