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न्याय किधर है / कुमार कृष्ण

शहर पहुँचने पर बच्चे ने मुझसे पूछा-
पापा न्याय हमें कहाँ मिलेगा?
शायद उन काले कोट वालों की जेबों में
बचा हो थोड़ा-बहुत उसे ढूंढ़ने का सुराग
वैसे मैंने नहीं देखा कभी उसका असली चेहरा
सुना है
गाँधी की तस्वीर के पीछे छुपा है वहाँ तक पहुँचने का
सही रास्ता
चलो आज रात उर्जित पटेल से पूछेंगे
उसका सही पता
अरे पापा रघुराम राजन भी ढूंढ़ते रहे
उसे दिन-रात
आखिर चले गए एक दिन चुपचाप
कोलम्बस की दुनिया में
इस गीता वाली धरती पर-
हार गया राजन का सच
तब तो सही कहा था गाँव के प्रधान ने-
तुम कहीं भी जाओ
सिर्फ घंटियों में ही बोलता है सच
काले कोट वालों का दिमाग़ समझता है-
उर्जित पटेल की भाषा
चलो लौटें अपने बंजर खेतों की ओर
यह न्याय ढूंढ़ने का नहीं
हलवाहों की कतार बनाने का वक़्त है
यह गाँधी के चश्मे के बारे में
सोचने का वक़्त नहीं
हंसुए को धार देने का वक़्त है।