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न दोष कुछ तेरी कटार का है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र

न दोष कुछ तेरी कटार का है।
मुझे ही शौक़ आर-पार का है।

बिना गुनाह रब के पास गया,
क़ुसूर ये ही मेरे यार का है।

मुझे जहान या ख़ुदा का नहीं,
लिहाज़ है तो तेरे प्यार का है।

करे ग़ुरूर रब की चीज पे क्यूँ,
तेरा हसीं बदन उधार का है।

लो नौकरों ने देश लूट लिया,
क़ुसूर मालिकों के प्यार का है।