Last modified on 9 दिसम्बर 2012, at 20:08

न शोर न सन्नाटा / संगीता गुप्ता

न शोर
न सन्नाटा
न शून्य
न अनुभूति
अवाक जरूर हूँ

नटों का खेल
जीवन
संतुलन बिगड़ा नहीं कि
धराशायी
कब, कहाँ हुई भूल ?
स्थितियों का जायजा लेती
सोचती हूँ

फिर उठूंगी
चल पड़ूंगी
मेरे लिए
क्यों न बना रहे
सिर्फ नटों का खेल
जीवन