मैंने तुमसे कहा
मैं उड़ना चाहती हूँ
तुमने सुना और
बड़े प्यार से पंख दिये
मैंने पंखों को लिया और
और रख लिया तकिये के नीचे
कल्पनाओं में उड़ती रही रोज़
तुम खुश क्यूंकी
तुम्हें पता थी
मेरी कल्पनाओं की हद
मैं खुश कि मेरे पास पंख हैं
एक दिन झाड़ते
सपनों के बिस्तर पर
तकिये तले मिले
मुझे तुम्हारे दिये पंख
उन्हें लगा काँधों पर
मैं सचमुच,
बस उड़ने ही वाली थी कि
न जाने
किस बात से डरे तुम कि
मेरे उड़ने से ठीक पहले
नोंच लिए मेरे पंख।