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पंचकन्या / अंकावली / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’

1. अहल्या -
हिम समीर शीतल क्षीरोदा नदी उदारे
कुटी जतय रूपसी उर्वशी गोतम - द्वारे
कय प्रवेश मुनि वेश कपट - पटु सुरपति द्वारे
शील हरण कय, जनिक लुटल सर्वस संसारे
तन दूषित, मन मुनि-तियक पूत, तदपि अभिशापिते
पाषाणी प्रभु पद परसि धन्या धनि कन्या वृते

2. द्रौपदी -
मिलित करिअ उपभोग, भोग्य जे उपगत, सुतगन!
कहल सहज भावहिँ जननी कुन्ती सिनेह - घन
पंच - पति क बनि प्रिया द्रौपदी नव आदर्शे
विजय - वैजयन्ती यशवन्ती भारतवर्षे
यज्ञ - वेदिका जनमि जे रण - वेदी कय प्रज्वलित
पूर्व जन्म अभिशाप, तेँ कन्या बनि कत वर कलित

3. तारा -
वर-वर्णिनी गुरुक वाणी जनि शिष्य क आनन
तारा दृग - तारा बनि सजलनि चन्द्रक आङन
बुध - जननी भय विवदमान विधि सन्धिक मानलि
वा बालि क अलि हित अपना केँ कुसुम प्रमानलि
अंगज अंगद भक्त वर वा बुध सुत उत्पादिके
पुनि सुकंठ संगत बनलि कन्या धन्य कुमारिके

4. कुन्ती -
मन्त्र साधनेँ सिद्धि जनिक आकर्षण योगें
धर्म पवन सुरपति सुरवैद्य - युगल संयोगें
कवच - कुण्डली कर्ण, धर्मवीरो युधिष्ठिरो
भीमार्जुन सन रण - पण्डित पाण्डव पँच वीरो
काम - कामना नहि कनहु वीर धीर प्रसव क ब्रती
तदुचित सुचित उपासना कन्या धनि कुन्ती सती

5. मन्दोदरी -
मन्द उदरि, मन्द स्मित, मत्त मयन्द - गामिनी
मन्दोदरी मय क तनुजा दशवदन - भामिनी
रहितहुँ लंका वंका नागरि, ज्ञान - गुनागरि
सुता समान बुझल सीता केँ पति रति वागुरि
शत-शत सुत कन्या जनमि, पुन-बल पंकहु जलज बनि
कन्या पंचक बिच गनित पातक-पातिनि सुमिरु धनि