तीरथ करै ले पंडित जी चललै
साथों में कीरतू नौकरो के,
रे कीरत तोंय पढ़ी लिखी ले
संस्कृत भाषा सीखी के।
कुछू पढ़लकै कुछु लिखल कै
रही गेलै अधकचरों में,
पंडित जी के पियासें सतैल कै
लोटा डोरी छै हाथो में।
पानी ले झुकलै कुईयां में गिरलै,
आवाज करै छै अन्दर सें,
नौकरें गरजै हरवाहा सें
पंडितोअपि कूपो गतम्।
भो (हो) हलधर पंडितोपि कूपो गतम्
पंडितोपि कूपो गतम्
पंडितें कहै छै हिन्दी में वोलैं,
कीरतू गरजै छै संस्कृतो में,
हरवाहा वेचारा की वै समझै,
डोर हांकै छै मस्ती में।
नैं पंडित जी तीरथ कैलकै
रही गेलै मनसूवौ में,
वीचों पंतर में प्राण गमैलकै
मुरखा के रो चपेटों में।
एक महावत सुनरे भाइ,
मुरखा सें रहियौ होशियार,
पंडित यदि शत्रु भी हुवै
हौ स्वामी के वफादार।