पकी फ़सल
काट ले गए होते
दिन दहाड़े
आँखों के सामने
तो भी
उतना दुख नहीं होता
जितना कि
कच्ची फ़सल काटकर
छोड़ गए खेतों में
रातों रात
पकी फ़सल
काट ले गए होते
दिन दहाड़े
आँखों के सामने
तो भी
उतना दुख नहीं होता
जितना कि
कच्ची फ़सल काटकर
छोड़ गए खेतों में
रातों रात