बेटियाँ सीखती हैं अपनी माँ से ही
स्वेटर बुनना और
खुरदरी हथेलियों पर घर ढोना।
बेटियाँ सीखती हैं माँ से ही
बनाना चपातियाँ गोल-गोल और
अश्रुओं को रसोई तक ही रखना।
बेटियाँ सीखती हैं माँ से ही
चलना मर्द के पीछे-पीछे और
रह जाती हैं वे अक्सर पीछे।
बेटियाँ सीखती हैं माँ से ही
जो उसने अपनी माँ से और
उसकी माँ ने अपनी माँ से सीखा।
इस तरह चलता चला आ रहा है परम्परा का
पगडण्डी से पक्की सड़क बनने का सफ़र।