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पगड़ी / स्वप्निल श्रीवास्तव

जिन्दगी भर वे पगड़ी के साथ रहे
किसी मुसीबत में पड़ते तो दूसरों के
पाँव पर रख देते थे पगड़ी
उम्र भर खेलते रहे पगड़ी का खेल
जाते समय पिता ने सौंपी थी यह पगड़ी
और कहा था -- यह जादुई पगड़ी तुम्हें हर
मुसीबत से बचा सकती है
पगड़ी कभी सिर पर कभी किसी के
पाँव पर पड़ी रहती थी
वह सुविधानुसार बदलती रहती थी जगह
पगड़ी को नाव बना कर वे सीख गए है
भवसागर पार करने की कला