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पग धूल चाहिए / प्रेमलता त्रिपाठी

काँटों के सह फूल चाहिए ।
जीवन पर अनुकूल चाहिए ।

आशाएँ मन प्राण बाँधती ,
श्रम सीकर पग धूल चाहिए ।

बंधन ये घर-द्वार मोह,तन,
अर्पण हो बस मूल चाहिए ।

राँझे-हीर न चाह माँगती,
पावन संगम कूल चाहिए ।

खुशहाली गर प्रेम चाहती
बोना मत फिर शूल चाहिए ।