बुन्देली लोकगीत ♦ रचनाकार: ईसुरी
पग में लगत महाउर भारी,
अत कोमल है प्यारी,
आद रती को लाँगा पैरें।
तिलकी औड़ें सारी।
खस-खस की इक अँगिया तन मैं
आदी कौर किनारी
रती रती के बीच ईसुरी,
एक नायका ढारी।
पग में लगत महाउर भारी,
अत कोमल है प्यारी,
आद रती को लाँगा पैरें।
तिलकी औड़ें सारी।
खस-खस की इक अँगिया तन मैं
आदी कौर किनारी
रती रती के बीच ईसुरी,
एक नायका ढारी।