♦ रचनाकार: अज्ञात
बहू की विवशता
-पंचरंगी चीरा बाँध कै
बीरण मेरा घेरों में बैठ्या री
हेरी सासू झटपट दे दे न दूध ,
बीरण मेरा निरणों बासी री
हे बहू इतनी क्यों तारै तावळ
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जलै न ल्हासी दे दो री ।
पंचरंगी चीरा…
-हे री तेरी हाण्डी मैं मारूँ ईंट
भूरी पै चोर लगा दूँ री ।
पंचरंगी चीरा……
हेरी बहू ऐसे न बोल्लै बोल
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भेज कै नाँव भी नी लेणे की
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पंचरंगी चीरा……
हे री मैं नौं भाइयों की बाहण
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भतीजे मेरे बहुत घणै
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पंचरंगी चीरा……
-हे री वे देंगी अपनी जूठ
जली का पेट भरैगा री
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पंचरंगी चीरा……