Last modified on 11 अगस्त 2015, at 15:19

पचास साल / रामकृष्‍ण पांडेय

यह देखो
मैं पचास साल का हो गया
पचास साल पुरानी हो गई
यह दुनिया मेरे लिए

ऐसा लगता है
ख़त्म नहीं हुआ है
अभी इसका अन्धकार-युग
आज भी मनुष्य
रेंगता है पृथ्वी के वक्ष पर
घुटनों के बल
चौतरफ़ा आक्रमणों से क्षत-विक्षत
मौक़ा मिलते ही
दूसरों पर झपट पड़ने को विवश

अभी-अभी ही तो हुआ था
वह महाविस्फोट
फिर शुरू हुई ज़िन्दगी की हलचल
कि कालचक्र पूरा हो गया

यह देखो
मैं पचास साल का हो गया