आँचल संभाल कर जुड़ा बांधो
देहरी, ड्योढ़ी विकल खड़ी न रहो
नदी रंगों से भरी है
(वैकुण्ठ की राह खो गयी है इस नदी में)
मुझे मत उकसाओ
पछवा बह रही है
आँचल संभाल कर जुड़ा बांधो
देहरी, ड्योढ़ी विकल खड़ी न रहो
नदी रंगों से भरी है
(वैकुण्ठ की राह खो गयी है इस नदी में)
मुझे मत उकसाओ
पछवा बह रही है