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पड़ाव / राजीव रंजन

चिकनी काली कोलतार की सड़क पर,
जो शायद मुझे मेरी मंजिल तक ले
जाएगी, इस आस में चला जा रहा हूँ।
लेकिन मंजिल पर पहुँचते ही वहाँ से
फिर एक नयी चिकनी काली कोलतार पुती
सड़क निकलती है जो मंजिल को
खिसकाकर और दूर ले जाती है,
हर बार मंजिलों को पड़ाव बनाते हुए।
गर्मी के कारण गर्म हो अब
काली कोलतार की सड़क पिघलने लगी है
अब तो इस पर चलना बहुत मुश्किल हो गया है,
इस पड़ाव से उस पड़ाव तक भी।