Last modified on 23 अप्रैल 2011, at 06:11

पड़ रैयी है पार / नीरज दइया

फूलां री सौरम लियां पछै
भगवान रै नीं चढाइजता हा फूल।

बखत बखत री बात है
अबै किसै फूल माथै करां भरोसो
जे फूल बोलतो-बतळांवतो
अर कैवतो कै- ’म्हैं चढावणजोग हूं।’
तो करतो किंयां थूं पतियारो
जद कै थूं खुद ई, नीं बताय सकै
कै गीता री सौगन खायं पछै
कुण-कुण बोलै है- सांच!

ठीक है भायला!
पड़ रैयी है पार
भगवान कीं नीं बोलै
अर जे बोलै ई तो, कांई बोलै-
फूलां सारू?