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पडूतर / कन्हैया लाल सेठिया

लागै
जागतै नै
जगत साचो
नींद में सूतै नै
सपनो,
किसी साच
किसी झूठ ?
का सोक्यूं ईं भरम !
ठमगी कलम
देख‘र दरपण
अणभूतीज ग्यो मरम
दोन्यूं ही
जीव रा ईठ !
दीठ‘र अदीठ !
पेट‘र पीठ !