जद कदैई देखूं
आकासां उड़ता पतंग
रंग बिरंगा
लाल, पीला, नीला, धोला,
उड़ता, लहरांता, पेच लडान्ता,
तो लागे जाणे मैं भी
एक पतंग ही तो हूँ
जिणरी डोर कोई रे हाथ में नी
फगत एक तार स्यूं बांधर छोड़ दी है
उड़ तो सकूँ
पर उतनो ही
जित्ती डोर अरगनी स्यूं बन्धी है
ना आगे न लारे
कोई रे हाथ में ही नी है
फेर भी बस बन्धी बन्धी सी
काश या तो कोई थाम ले डोर
या फेर टूट ही जावे
कीं तो हो
के ठा किस्मत कीं सावळ ही हो
लाग जावे ऊपर ली हवा
और मैं उड़ती जाऊँ
उड़ती जाऊँ
दूर गिगना स्यूं पार
अर जा मिलूं
साँवरे सेती
जा मिलूं साँवरे सेती