जे तरह सन्यासी तेजै गद्दी या धनधाम
आरो जोगीं तृष्णा-माया-लोभो-रागो-काम
जों पति-परदेश पर तिरियां तजै सिंगार
तेहने तेजै पीरोँ पत्ता केॅ निपत्तोॅ डार
नागा हेनोॅ धारा-पाँती मेँ खड़ा छै गाछ
खोली केॅ सौंसे बदन कान्हा सेँ लैकेॅ काछ
रात मेँ ई ठूँठ लागै नँग धडंग रँ भूत
दिन मेँ लागै खाड़ोॅ छै श्मशान मेँ अवधूत
सामना मेँ ठूँठ पीपर रोॅ सहस्त्रो डार
जों बुझाबै छै सहसबाहु के ही अवतार
आकि पत्तावाला डाली भेलै धरती तोॅर
आरो जेना भै गेलोॅ छै उल्टै ऊपर जोॅड़
बोहोॅ पत्ता रोॅ बहै छै; दै हवां छै जोर
लड़खड़ावै, खड़खड़ावै छै, करै छै शोर
हरहराय केॅ खड्ड-खाई केॅ करै छै सोॅर
जे जहाँ छेलै वहीं पर भै गेलोॅ छै तोॅर
एक सन्नाटा उदासी छै परोसलोॅ शांत
गूंजै छै जों, खड़खड़ाहट सेँ समुच्चे प्रांत
हलहलाबै एक अभियो पर बनोॅ रोॅ गाछ
दूर सबसेँ, रीतु पतझर केॅ नचैतेॅ नाच
जोॅड़ निकली केॅ तना सेँ भै गेलोॅ छै तोॅर
के उजाड़ेॅ? देखथैं लागै हवा केॅ जोॅर
सब जगह के पंछी आबी केॅ लेलेॅ छै ठाँव
गूंजी रहलोॅ छै टी-वी-टू, कुहू आरो काँव
ताही नीचेॅ बैठलोॅ गेनां निरासै ठूँठ
सोचै, सचमुच जिन्दगी की व्यर्थ? बिल्कुल झूठ?
बाँचै रही-रही पत्र झुनिया रोॅ; ऐलोॅ छै आज
एक आखर पढ़थैं जेकरोॅ छै गिराबै गाज
छै लिखै कि ‘बड़ंका बाबू, की लिखौं सब हाल
खाट पर पड़लोॅ होलोॅ छै माय रोॅ कंकाल
आठ बरसोॅ रोॅ समय रोॅ आबी गेलै अंत
बीच मेँ आबी केॅ कहियो भी नै लेलौ तंत
”तों कमाबै मेँ सभै लेॅ छौ वहाँ मशगूल
माय रोॅ मूँ पर यहाँ उड़तेॅ रहै छै धूल
की पता तोरा वहाँ छौं, बौंसी रोॅ सब हाल
अबकि अगहन खेत मे ट कत्तेॅ रहै बेहाल
”एक दिन पड़लोॅ छेलै भादो फिरू सब शांत
पड़लै की! कानलोॅ छेलै देखी धधकलोॅ प्रांत
कौआ-कुत्ता कानतै रहलै अघन के बाद
देह दै-दै खेत केॅ लोगैं बनाबै खाद
”लोग दाना लेॅ मरै छै, गिद्ध रोॅ छै मौज
आठ बत्तिस रोॅ कन्हा पर गुजरै एक दिन? रोज
हर कहो जी! हर कहो जी! राम ही एक सत्त
गूंजै सद्धोखिन, घुमै छै मिरतु निर्भय-मत्त
”छोॅ दिनोॅ रोॅ भुखली रधिया के भेलै कल मौत
भाग्य सबके साथ घूमै छै बनी केॅ सौत
”जखनी रधियाँ दम तोड़लकै तखनी ओकरोॅ माय
की तरह सेँ छाती पीटै, रुदन करतें हाय
जों कबूतर लोटनी ही; आँखी में लै लोर
कै दिनोॅ तक रात-संझा आरो करतेॅ भोर
”आखिरी मेँ भूख नेँ मय्यो रोॅ लेलकै जान
रधिया पहिने; माय पीछू सेँ गेलै श्मशान’
‘लोग दुबड़ी-घास नोची केॅ मिटाबै भूख
गांग सेँ जयादा पवित्तर होय गेलोॅ छै थूक
आबेॅ पतझर जे भेलै, पत्ती नै; केन्होॅ हाल
बुतरूओ थोथोॅ मुँहोॅ सेँ छै चबाबै छाल
”छा बिन केन्होॅ लगै छै गाछ! सब रोॅ धोॅड़
आदमी हपकी गेलोॅ छै नीम तक के जोॅड़
”घर रोॅ पिछुवाड़ी मेँ तोहरे ही लगैलोॅ बेल
जै पेॅ झुलवा तोंय लगाय हमरा खेलाबौ खेल
आरो पत्ता केॅ चढ़ाबोॅ शिव केॅ भोरे-भोर
छाती फटतौं देखी केॅ रुकतौं जरो नै लोर
”छाल ओकरे नी उबाली कटलै दिन तेॅ रात
आबेॅ ऊ भी नै दिखै छै; मृत्यु लै छै घात
हमरा की? हम्में तेॅ लै छी माँटियो भी खाय
भूख सेँ बनलोॅ बिछौना खाट पर छै माय!
‘आखिरी ये वक्ति जेनोॅ लै हमेशे साँस
चाहै छै बोलेॅ लेॅ कुछ; गल्ला मेँ फसलोॅ फाँस
‘आँख खोलै, खुल्ले ही घन्टो रहै छै आँख
भूलो सेँ नै बन्द होय छै पलक रोॅ दू पाँख
बन्द होय छै तेॅ जेना खुलबै नै करतै हाय
बड़का बाबू, आबेॅ नै बचती लगै छै माय
”सनसनाठी रँ भेलोॅ छै गोड़ आरो हाथ
ठीक सेँ साँसो कि जेना दै नै ओकरोॅ साथ
खुल्ला आँखी मेँ जलै श्मशान जेना हाय
बड़का बाबू, आबेॅ नै बचती लगै छै माय“
पढ़ी-पढ़ी फाटै चित्त कपड़ा घुनैलो रँ
लोर ढरै गेना रोॅ आँखी सेँ गिरै टपटप
जेकरा कि मूड़ी दायाँ-बायाँ करी पोछी लै छै
बाँही सेँ। नै देखेॅ कोय यही लेली झबझब
मोॅन करै बच्चे रँ भोक्कार पारी कानौ पर
रहै छै दोनों ही ठोर खाली करी कपकप
हुमड़ै छै बन्द मूँ मेँ कानबोॅ गेना रोॅ आरो
आँखी मेँ दिखाबै लोरोॅ केरोॅ मोती दपदप।
कानोॅ मेँ गूंजै छै बात केकरोॅ ई घुरी-घुरी
झुनियाँ रोॅ बाबू छेकेॅ कानी-कानी बोलै छै
‘तोहें डोलोॅ शहरोॅ के शौक-मौजे मेँ ही
मरै तुल झुनियाँ रोॅ माय हुन्नेॅ डोलै छै
बड़ोॅ-बड़ोॅ बात करै छेलौ, मरै तुल छेलाँ
आदमी तेॅ सूने मेँ ही मोॅन-धोॅन खोलै छै
आय जत्तेॅ झुनियाँ रोॅ दुख सेँ दुखित नै छी
तोहरोॅ विचार कहीं ज्यादा मोॅन झोलै छै।
दागी देलेॅ रहेॅ देह छोॅड़ धीपलोॅ सेँ जेना
जेना छेदी देलेॅ रहेॅ आर-पार तीरोॅ सेँ
धीपी कनपट्टी गेलै-लाल-लाल लोहोॅ लाल
रहेॅ पारलै नै गेना तनियो टा थीरोॅ सेँ
घामोॅ सेँ नहैलै हेने; जेना, सुनी-सुनी बात
कानै छै दुखित होय सौंसे ही शरीरोॅ सेँ
चिन्ता, असगुन, याद, सोच सेँ बन्हैलै हेनोॅ
जेना हिरनौटा बंधेॅ हाथी के जंजीरोॅ सेँ।
घूमै छै आँखी मेँ फगदोल झुनियाँ रोॅ माय के
‘राम नाम सत्त है’ गूंजै छै दोनो कानोॅ मेँ
गेना आगू-आगू फगदोल पीछू लोग सब
रही-रही घूमै छै दिरिश यही ध्यानोॅ मेँ
छाती पीटी-पीटी हकरै छै, लोटै, माथोॅ चूरै
झुनियाँ कानै छै; जेना, भाला गाँथै जानोॅ मेँ
हेनोॅ कुम्हलाय गेलै गेना रोॅ बदन सौंसे
जेना कि गहन लागी गेलोॅ रहेॅ चानोॅ मेँ।
उठै-गिरै, गिरै उठै मनोॅ मेँ विचार फेरू
देखै छै कि झुनियाँ रोॅ माय आँख मीचै छै
‘मरतै की जीते जी ही हमरोॅ ?’ ई सोचथैं ही
लागै जित्तोॅ गेना रोॅ ही खाल कोय खीचै छै
‘ई नै होतै! ई नै होतै! केन्हौं केॅ भी ई नै होतै!
पूरा ई विश्वास साथ गेना साँस घीचै छै
बहै छै आँखी सेँ लोर आकि जमलोॅ होलोॅ केॅ
जानी केॅ बेकार, बेसी, आँखी सेँ उलीचै छै।
एक बार झोली सौंसे देह केॅ सजग भेलै
आँख मीची कस्सी केॅ निहारै फेरू चारो दिश
मुट्ठी बान्है, मनोॅ मेँ विचार करै कत्तेॅ -कत्तेॅ
चलै छै अभीयो वही अन्धड़-पानी के ढीस
थमै छै मनोॅ रोॅ हौलदिल आबेॅ; जेना, साँप
मार खाय लोटै, झाड़ै आखरी समय रोॅ रीस
मुँहो पेॅ चमक आबी गेलै खिली गेलै मोॅन
जली-जली राख भेलै, गेलै कुम्हलाय टीस।
घूरै छै आँखी मेँ सौंसे गाँव, घोॅर, लोग, जोॅन
देखै छै गेना कि जेना सब्भे दिश दौड़े छै
केकरो जाँतै छै गोड़, केकरो दबाबै देह
केकरो लेॅ कंद-मूल बनोॅ मेँ जाय तोड़ै छै
केकरो खिलाबै छै, पिलाबै छै दबाय-दारू
सब्भै सें ही नेहोॅ रोॅ सम्बन्ध दौड़ी जोड़ै छै
छोड़ै छै नै जात, परजात, पोॅर-परिजन
जेना झुनियाँ रोॅ रोगी माय केॅ नै छोड़ै छै।
देखै छै कि भूखोॅ सेँ भुखैलोॅ लोग हेनोॅ लागै
जेना कोय बच्चा नेँ बनैलेॅ रहेॅ तस्वीर
हाथ गोड़ लम्बा-लम्बा, डगमग, पेट आरो
पीठी रोॅ पता नै रहेॅ; अँगुरी जों रहेॅ तीर
आँख रहेॅ खोड़र ही, डीम; जेना, जीभ रहेॅ
देखी केॅ भौआय गेलै, गेना भै गेलै अधीर
सोचै छै ई आदमी रोॅ हाथ, गोड़, देह छेकै?
काठी खासी-खोसी गढ़ी देलेॅ छै सौंसे शरीर।
देखै छै गेना कि गेना दौड़ी-दौड़ी पानी लानै
छानी लानै, चुरू-चुरू प्यासला पिलाबै छै
माँगी लानै केकरौ सेँ बाजरा या मडुआ केॅ
आरो खतकाय वहेॅ केकरो खिलाबै छैै
जड़ी केॅ उखाड़ी लानै, केकरो बाँही पेॅ बान्है
केकरो लेॅ कूटी छानै, मोॅद मेँ मिलाबै छै
कालें नेँ मारी दलेॅ छै जेकरा कि थोकची केॅ
ओंकरौ भी गेना छूवी छनै मेँ जिलाबै छै।
जेना मधुमास मेँ पलास वन लहकै छै
शोभै छै सरंग पनसोखा रंग पाबी केॅ
माय-मोॅन जेना भरी उठै मद-मोद सेँ छै
फूल हेनोॅ छाती मेँ सोना रोॅ लाल पाबी केॅ
होन्हे गेना रोॅ सेवा सेँ सब्भे छै सरस-सुखी
ओकरोॅ निस्वार्थ प्रेम, त्याग-धोॅन पाबी केॅ
जेना परदेश मेँ खुशी सेँ कोय झूमी उठै
आपनोॅ देशोॅ रोॅ चैता, गोदना केॅ गाबी केॅ।
देखै छै तबैलोॅ ताँबा हेनोॅ देह चमकै छै
रूप; आग मेँ गलैलोॅ चाँदी हेनोॅ चमकै
सब्भे रोॅ मुँहोॅ पेॅ वही पुरबी छै, समदौन
झूमर के बोल घुँघरूवे हेनोॅ छमके
सुनी-सुनी सेहर के सुर, सुन्दरी रोॅ पाँव
आगू नै बढ़ै छै रुकी-रुकी जाय, ठमकै
टोला-टोला मेँ चली रल्होॅ छै वही गीत-नाद
कानोॅ मेँ गेना रोॅ वही ढोल-झाल झमकै।
आरी देखै छै गेना कि दौड़ी-दौड़ी लोगोॅ पीछू
गेना पड़ी गेलोॅ छै बीमार बड़ी जोरोॅ सेँ
हाथ गोड़ झामे रँ झमैलोॅ, कँपकँपी छूटै
पटपरी पड़ी गेलोॅ लहू चुवै ठोरोॅ सेँ
रसेॅ-रसेॅ ऐंठन उठै छै, उठले ही जाय
दरद देहोॅ मेँ फैलै उगी पोरोॅ-पोरोॅ सेँ
तहियो छै सबरोॅ सुखोॅ सेँ सुखी, हा! हा! हाँसै
बान्है; नै बन्हाबै आधि डायन के डोरोॅ सेँ।