तुमने जब-तब
पतझड़ के ठूँठ पेड़ को देखकर
मातमी गीत गाया है
पर मैं
जब भी गुज़री हूँ
करीब से
अनायास मैंने
श्रद्धा से सिर झुकाया है
पतझड़ का पेड़
मेरे लिए
एक विगत-रात संन्यासी है
अंतर्मुखी
ध्यानस्थ
हर्ष की हरियाली
विषाद का पीलापन
अपनी रंगहीन काया में
आत्मसात किये
एक पुँज है
यह तापस
कल्पनातीत संभावनाओं का
1972