इस बरस बेताल है पतझड़
झर रहे पीले, मरे पत्ते
कहीं भी नहीं खड़-खड़ ?
हर तरफ़ गूँगे खड़े हैं पेड़
झाड़ियाँ सब, ऊन काटी भेड़
बस !
ज़रा-सा काँपता है धड़
दे रही ड्यूटी हवा मन मार
कई दिन से धूप है बीमार
देह दुर्बल
आँख में कीचड़
इस बरस बेताल है पतझड़