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पतझर जीवन को / रमेश रंजक

एक ग़लतफ़हमी-सी टूटी
याद नए अँकुर-सी फूटी
              तब मेरे पतझर जीवन को
              ज्ञात हुआ मैं बादल भी हूँ

जाने कैसा शाप की मेरी
प्यास हुई पत्थर की मूरत
पीले हाथ करूँ सपनों के
ऐसा उगा न एक महूरत
              यूँ ख़ामोशी की ख़रीद हूँ
              लेकिन मैं कोलाहल भी हूँ

ऐसी हवा चली माथे तक
पहुँच गई पाँव की बिवाई
लाँघ गई सागर का आँगन
मेरी गागर भर तनहाई
              पर्वत से भारी, भारीपन
              बाँधे हूँ, पर आँचल भी हूँ