पत्थर दिल
दुनिया का, कुछ-कुछ भला हो रहा है
आज किसी कोने में छुपकर
मर्द रो रहा है
शुभ ही रहा क्रौंच का मरना,
कविता रचवा दी
ज्ञानी ध्यानी
वैरागी को करुणा उपजा दी
गीले गालों पर, बहेलिया
पाप धो रहा है
किरणों को छू कर पर्वत का
बर्फ़ पिघलता है
अड़ियल अचलेश्वर
योगी का आसन हिलता है
बड़दादा को भुजबल पर
अफ़सोस हो रहा है
लगता है अब हवा चलेगी,
पानी बरसेगा
अगिया बापू
कान पकड़कर, सॉरी बोलेगा
इत्मिहान में फ़ेल युवक
निश्चिंत सो रहा है