पत्थर नक़ाबों के बाहर / वेणु गोपाल


सूरज के बारे में
कुछ भी नहीं जानता

अपने अंधेरे में
अकेली मौत मरता हुआ
वक़्त

जबकि ऎन दोपहरी है
उसकी पत्थर-नक़ाबों के बाहर।

(रचनाकाल : 22.03.1980)

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