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पत्थर -1 / सुधा गुप्ता

बचपन में
दादी माँ की देखा-देखी
पत्थर की प्रतिमा
पूजती थी
जब
बड़ी हुई
तो उसकी निर्रथकता समझ तो पाई;
लेकिन
आदत तो आदत है…
ज़िन्दगी का लम्बा सफ़र
तनहा
तय करने के बाद
जब तुम मिले तो
बस, तुम्हें पूजना शुरू कर दिया
यानी पत्थर पूजा की आदत से
मुक्ति
पाई !

-0-( 2-11-83)