कविता न लिख पाया
जो लिखनी थी
आ गया पहले ही
तुम्हारा जन्मदिन
पूछता कहॉं है-
वह तोहफा
शब्दों से भरा
वाक्यों से सजा
थरथरा रहे
जिसे पाने हेतु
मेरे होंठ
रोमांच जाग रहा
कौतूहल की मॉंद में
मॉंग भी चमक रही
चेहरा भी हुआ लाल
कहॉं है वह ?
सुनकर तेरी बातें
ऑंखें मेरी झुक आयीं
कविता लगी
पंख फडफ़ड़ाने
किन्तु लिखूँ किस भाव से
जब सब कुछ
सौंप दिया है तुम्हें आज ।