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पत्र / सुरजीत पातर
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सुरजीत पातर
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पत्र
पत्र
उसे पत्र भेजते रहों मोह से भरे
वरना गैरों की नगरी में
शाख नंगी हो जाएगी
अनुवाद: चमन लाल