बढ़ो धूलि के अथक पथिक तुम,
पगडंडी से स्वर आता है
बढ़ा पाँव आगे, पगध्वनि सुन
सोया सर्जन सिहर जाता है
उखड़े बिखड़े पगचिन्हों को
पढ़ लो, गीत छपे जाते हैं
चलना हीं तो काव्य बन गया
पथ के पृष्ठ खपे जाते हैं
चलने में भय क्या? शंका क्या!
जब पथ का आशीष मिल रहा
अरे! किसी रीते से क्या लूँ?
चरण चरण पर फूल खिल रहा