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पथ न भूल जाना (पैरोडी) / बेढब बनारसी


पथ भूल न जाना पथिक कहीं
संध्या की पश्चिम में लाली
श्यामता लिए जब आयेगी
फूलों का हार लिए मालिन
गजरा-गजरा चिल्लायेगी
उन दोनों की सुषमा लखकर
पथ भूल न जाना पथिक कहीं
जिस समय बिहंगम बालाएं
संगीतों के मृदु स्वर भारती
जिस समय किरण स्वर्णिम सुखकर
पुष्पों का मुख रंजित करती
सुस्मित गुलाब को देख-देख
पथ भूल न जाना पथिक कहीं
जब ढीला पाजामा छोड़े
या चुन्नटदार पहन धोती
घर से निकालो चमकाकर मुख
जैसे कलचरके हों मोती
निज श्रृंगारों की सुषमा में
पथ भूल न जाना पथिक कहीं
खाने को पान तमोलीकी
दूकानके निकट जाओगे
कर अधर लाल, खाकर जर्दा
मुख से सुगंध बगाराओगे
दर्पण में निज प्रतिबिम्ब देख
पथ भूल न जाना पथिक कहीं
पथ पर बैठे होंगे चाटों . . .
को लेकर खोंचेवाले भी
गुलगप्पे दहीबड़े आलू ,
होंगे सब भरे मसाले भी
मुख में पानी यदि भर आये
पथ भूल न जाना पथिक कहीं
सिनेमाघर पर जब टिकटके . . .
पथ भूल न जाना पथिक कहीं
लिए उत्सुक भीड़ बड़ी होगी
उत्कंठा में महिलाओंकी भी
अलग जमात खड़ी होगी
तब पिया मिलन के गाने में
पथ भूल न जाना पथिक कहीं
कवि सम्मलेन में कविता सुन
जब लोग वाह करते होंगे
हस्ताक्षर लेने को जब कोमल
कर-पल्लव बढ़ते होंगे
ओटोग्राफों के लिखने में
पथ भूल न जाना पथिक कहीं
स्टेशन पर नत नयन किये
महिलायें अगर बिदाई दें
डब्बों के वातायन से जब
चन्द्रानन तुम्हे दिखाए दें
तब इधर-उधर की उलझन में
पथ भूल न जाना पथिक कहीं
गति चंचल आती जाती हो
जब कोई अंग्रेजी बाला
अधरों को लाल रंगे,पाउडर
मुख पर, नयनों में हाला
ऊंचे 'स्कर्ट' निरख करके
पथ भूल न जाना पथिक कहीं