पथ पर जो मिला-
सोते से जगा दिया,
गले से लगा लिया;
चाहे फिर जो भी हो-
शबरी या शिला।
अपनों से ठगा गया,
अनुभव ही जुड़ा नया;
फिर भी विश्वास बंधु
तनिक नहीं हिला।
बाज़ारों-हाटों से,
ले-देकर काँटों से,
जूड़े में खोंस दिया
फूल जो खिला।
आए सीधे चढ़ाव
मंजिल जैसे पड़ाव,
किसी से नहीं मुझको-
शिक़वा या गिला।
पथ पर जो मिला!