पथ में आँखें आज बिछीं प्रियदर्शन! तेरा दर्शन पा के, तोड़ बाँध अस्तित्व मात्र के आज प्राण बाहर हैं झाँके; पर मानस के तल में जागृति-स्मृति यह तड़प-तड़प कहती है- प्रेयस! मन के किरण-कर तुझे घेरे ही तो रहे सदा के! 1935