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पदचाप / महेन्द्र भटनागर

पड़ रहे नूतन क़दम

फ़ौलाद-से दृढ़,

और छोटी पड़ रही छाया

नये युग आदमी की आज !

धरती सुन रही पदचाप

अभिनव ज़िन्दगी की !

बज रही झंकार,

मुखरित हो रहा संसार,

नव-नव शक्ति का संचार !

परिवर्तन !

बदलती एक के उपरान्त

सुन्दरतर

जगत् की प्रति निमिष तसवीर,

घटती जा रही है पीर,

जागी आदमी की आज तो

सोयी हुई तक़दीर !

रुक गया

मेरे जिगर का दर्द,

बरसों का उमड़ता

नैन का यह नीर !

गीले नेत्र करुणा-पूर्ण

तुझको देखते विश्वास से दृढ़तर,

यही आशा लगाये हैं

कि जब यह उठ रहा परदा पुराना

तब नया ही दृश्य आएगा,

कि पहले से कहीं खुशहाल

दुनिया को दिखाएगा !

1949