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पद-4 / रामधारी सिंह 'काव्यतीर्थ'

अइलै हमरोॅ अंगनमाँ गुरू भैया
बहै सन-सन पवनमा पुरवैया
जीवन नैय्या के कौन खेवैया ?
राह भूली गेलोॅ छै सब्भे खोजवैया
हिन्नें-हुन्नें ढूढ़ै छै सब्भे ढूढ़वैया
ऐसैं नै मिलथौं नाव हँकवैया
गुरू द्वार जाय केॅ करोॅ सेवकैया
प्रसन्न होथौं तेॅ पार होथौं नैया ।