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पद / 1 / चन्द्रकला

एहो ब्रजराज कत बैठे हौ निकुंज माँहि,
कीन्हों तुम मान ताकी सुधि कछु पाई है।
ताते वृषभानुजा सिंगार साजि नीकी भाँति,
सखियाँ सयानी संग लेय सुखदाई है॥
‘चन्द्रकला’ लाल अवलोको और मारग की,
भारी भय-दायिनी अपार भीर छाई है।
रावरो गुमान अति बल अति भट मानि,
जोबन को फौज लैके मारिबे को धाई है॥