सिय-मुख चंद त्याग दूजो चन्द मंद कहाँ,
कौन कुण जानि समता में अवलोकों में।
मुख अकलंकी सकलंकी तू प्रसिद्ध जग,
कहि समझाऊँ कैसे वाको जाय रोकों मैं॥
दिवा द्यति-होन घन समय मलीन-खीन,
‘राम प्रिया’ जानै तोहिं जन सब लोकांे मैं।
लली-मुख लालिमा गुलाल सों लखात जैसे,
तैसी दरसावो तो सराहौं तब तोकों मैं॥