वृन्दावन-पावस छायो।
चहूँ दिसि कारे अम्बर छाये नीलमणी प्रिय मुख छायो॥
कोयल कूक सुमन कोमल के कालिंदि कूल सुहायो।
विष्णु कुँवरि जग श्याम रँग छायो श्यामहि सिंधु समायो॥
वृन्दावन-पावस छायो।
चहूँ दिसि कारे अम्बर छाये नीलमणी प्रिय मुख छायो॥
कोयल कूक सुमन कोमल के कालिंदि कूल सुहायो।
विष्णु कुँवरि जग श्याम रँग छायो श्यामहि सिंधु समायो॥